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2025-07-254 Minutes readheritage

Whispers of Shiva in the Hills – श्रावण शिवरात्रि स्पेशल

पौड़ी गढ़वाल स्थित ओडली महादेव धाम की पावन यात्रा।

Char Dham Temple Complex in Uttarakhand Himalayas

ओडली महादेव की दैवीय आभा।

पहाड़ों की शांत हवा में एक अजब सी बात है—जब भी श्रावण आता है, लगता है जैसे हर पेड़, हर पत्ता, हर घाटी शिव का नाम फुसफुसा रही हो। सुबह की ठंडी बयार में मिलती धूप, दूर कहीं मंदिर की धीमी घंटियाँ, और धारों का मधुर स्वर… सब मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते हैं जहाँ मन अपने आप शिव की ओर खिंच जाता है। श्रावण शिवरात्रि के दिन तो यह भावना और भी गहरी हो जाती है। ऐसा लगता है मानो पूरा पहाड़ जागकर भक्तों को बुला रहा हो—“आ जाओ, आज भोलेनाथ की गोद हमेशा से ज़्यादा करीब है।” देवभूमि उत्तराखंड में लोग इस दिन सिर्फ पूजा नहीं करते, वे अपने मन की उलझनें भी शिव के चरणों में रख आते हैं। यहीं वजह है कि पहाड़ों में श्रावण शिवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आत्मा को हल्का कर देने वाला अनुभव है। लोग दूर–दूर से पदयात्रा करते हैं, कांवड़ लाते हैं, किसी पत्थर पर बैठकर ‘ओम नमः शिवाय’ का जाप करते हैं और अपने भीतर की सारी थकान एक साँस में बाहर छोड़ देते हैं।

ओडली महादेव मन्दिर का इतिहास

एकत्रित जानकारी के अनुसार सन् 1895 ई0 में डूंगरी गाँव के निवासी स्वर्गीय श्री बेलम सिहं बिष्ट, स्वर्गीय श्री बीरबल सिहं नेगी, स्वर्गीय श्री मंगल सिहं नेगी एंव स्वर्गीय श्री बहादुर सिहं रावत द्वारा “घस्या महादेव मन्दिर, श्रीनगर, गढ़वाल, उत्तराखण्ड” में स्थापित लिंग को लाकर अपने गाँव में “घन्डायाल देवता” के मन्दिर में स्थापित कर दिया। तत्पश्चात् लगभग 5-10 वर्ष डूंगरी गाँव में अजीब प्राकृतिक आपदायें, महामारी इत्यादि फैल गई जिसमें डूंगरी गाँव के निवासियों को काफी जान-माल की क्षति उठानी पड़ी। गाँव के जानकार व्यक्तियों द्वारा इस समस्या से समाधान हेतु जब पूछ्यरों/बक्यों से समर्पक किया गया तो पता लगा की “घन्डायाल देवता” में जिस लिंग की स्थापना की गई है वो तो “स्थापित सिद्ध शिवलिंग” है इसको “घस्या महादेव मन्दिर, श्रीनगर से नही उठाना चाहिए था, इसी गलती की वजह से गाँव में जान-माल की क्षति हुई।


सन् 1905 से 1910ई0 के दरमयान डूंगरी गाँव के निवासीयों द्वारा इस “स्थापित सिद्ध शिवलिंग” को अपने “घन्डायाल देवता” के मन्दिर से हटाकर ओडली गाँव कि भूमि में दो नदियों के संगम के समीप एक पिपल के वृक्ष के निचे रख दिया गया। धिरे-धिरे उस “सिद्ध शिवलिंग” को उपर से ढकने लिए गाँव वालों द्वारा एक 3-4 फिट का छोटा सा मन्दिर बना दिया गया। सन् 1925 में डूंगरी गाँव के ही श्री आलम सिहं बिष्टजी नें वहां पर पहला बड़ा सांड चड़ाया था जिसको श्री जीत सिंह जी जो कि थापली गाँव (पैठाणी) के थे, के द्वारा बनाया गया था तथा दूसरा छोटा सांड नैणगड़ गाँव के श्री सते सिहं जी द्वारा चड़ाया गया था।

कैसे पहुँचे और कब जाएँ

ओडली महादेव तक पहुँचना अपने-आप में एक शांत और सुखद अनुभव है। यहाँ पहुँचने के लिए आप पहले पौड़ी गढ़वाल आएँ—सड़क मार्ग से देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार और श्रीनगर से नियमित बसें व टैक्सी उपलब्ध रहती हैं।


मंदिर के पास पहुँचते ही आपको सड़क से ही भगवान शिव की विशाल और भव्य मूर्ति के दर्शन हो जाते हैं, जो देखते ही मन में श्रद्धा भर देती है। वहाँ से आपको पैदल चलना होता है, और कुछ ही मिनटों में आप मंदिर परिसर में पहुँच जाते हैं।


यहाँ आने का सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर माना जाता है, जब मौसम साफ, ठंडा और यात्रा के लिए आरामदायक रहता है। वहीं श्रावण शिवरात्रि और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशेष भीड़ रहती है, और उस समय की आध्यात्मिक ऊर्जा पूरे परिसर में महसूस होती है।

"SIMDI" से जुड़ा ओडली महादेव का सफ़र।

देवभूमि की गोद में बसे ओडली महादेव तक पहुँचना सिर्फ एक यात्रा नहीं—बल्कि एक एहसास है। और इसी एहसास को लोगों तक सुरक्षित, सहज और सम्मानपूर्ण ढंग से पहुँचाने में SIMDI अपनी भूमिका निभाता है।


SIMDI का उद्देश्य सिर्फ products पहुँचाना नहीं, बल्कि पहाड़, लोगों और यात्रियों के बीच एक सेतु बनना है। जब भी कोई यात्री महादेव के दर्शन के लिए आता है, उन्हें अक्सर रास्तों, पहुँच और स्थानीय सहायता की सही जानकारी नहीं मिलती। इसी कमी को समझते हुए SIMDI ने यहाँ की स्थानीय कम्युनिटी से मिलकर एक छोटा-सा लेकिन असरदार प्रयास शुरू किया है :


स्थानीय लोगों से जुड़कर उनकी जानकारी, उनके अनुभव और उनके मार्गदर्शन को यात्रियों तक पहुँचाना।

लोगों की रोज़गार संभावनाओं को बढ़ाने के लिए किफ़ायती cab/jeep rides उपलब्ध करवाना, ताकि गाँव के ड्राइवरों को सीधा लाभ मिले।

आने वाले भक्तों को साफ़, सुरक्षित और आसान यात्रा अनुभव दिलाना—बिना किसी भ्रम, बिना किसी परेशानी।
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